Navbharat Timesहक की बात : सड़क हादसे में जख्मी होने या मौत की स्थिति में क्या हैं मुआवजे के नियम, कैसे और कहां करें अप्लाई, जानें हर जरूरी बात

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मोटर वीइकल्स ऐक्ट 1988 के तहत सरकार ने सड़क दुर्घटना से जुड़े क्लेम के मामलों के निपटारे के लिए मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्राइब्यूनल बनाया है। इनका मकसद मामलों में जल्दी से फैसला और न्याय सुनिश्चित करना है।

हाइलाइट्स

नई दिल्ली : भारत में हर साल करीब डेढ़ लाख लोगों की सड़क हादसे में मौत होती है। दुनिया में यह आंकड़ा सबसे ज्यादा भारत में है। अप्रैल 2022 में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने राज्यसभा को बताया कि सबसे ज्यादा सड़क हादसों के मामले में भारत दुनिया के देशों में तीसरे नंबर पर है। वहीं सड़क हादसे में मौत के मामले में भारत पहले पायदान पर है। हादसे में होने वाली मौतों से पीड़ित परिवार बिखर जाता है। अगर कमाऊ सदस्य की सड़क हादसे में मौत हो जाए तो पीड़ित परिवार भावनात्मक रूप से तो टूटता ही है, आर्थिक रूप से भी टूट जाता है। ऐसे में जानना जरूरी है कि किसी सड़क हादसे में कोई व्यक्ति दुर्भाग्य से जख्मी हो जाए या उसकी मौत हो जाए तो संबंधित व्यक्ति या पीड़ित परिवार कैसे मुआवजा हासिल कर सकता है। इसकी प्रक्रिया क्या है? ट्राइब्यूनल या कोर्ट के इससे जुड़े महत्वपूर्ण फैसले क्या हैं? Haq Ki Baat ('हक की बात') सीरीज में हम यहां सड़क दुर्घटना में मौत या जख्मी होने पर मुआवजे से जुड़े नियम और प्रक्रिया के बारे में बता रहे हैं।हादसे में मारे गए बैंककर्मी की मां को मिलेगा 3 करोड़ रुपये का मुआवजा
मुंबई के एक मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्राइब्यूनल ने दो इंश्योरेंस कंपनियों को सड़क हादसे में मरे एक बैंककर्मी की मां को 3 करोड़ रुपये मुआवजे का आदेश दिया है। यह किसी सड़क दुर्घटना में संभवतः सबसे ज्यादा मुआवजा है। 11 अगस्त 2022 को टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में भूषण जाधव नाम के एक 38 साल के शख्स की सड़क हादसे में मौत हुई थी। जाधव कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड में काम करते थे।

2016 में जाधव अपनी इनोवा कार से परिवार के साथ पालघर जा रहे थे। रास्ते में वह अपनी गाड़ी रोक दिए क्योंकि उनके परिजनों को हाईवे से सटे एक गांव में अपने रिश्तेदारों से मिलना था। जाधव ने अपनी कार हाईवे पर ही बगल में रोक दिया। कार में सिर्फ वह और उनके पिता रुके, बाकी लोग रिश्तेदारों से मिलने चले गए। तभी एक तेज रफ्तार महिंद्रा पिकअप ने उनकी गाड़ी को पीछे से टक्कर मार दी। हादसे में जाधव की मौत हो गई। उनकी सगाई हो चुकी थी और शादी होनी थी।

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ट्राइब्यूनल ने हादसे को महिंद्रा पिकअप के ड्राइवर की लापरवाही बताया। उसने कहा कि हादसा सुबह साढ़े 8 बजे हुआ था। इनोवा कार दूर से ही दिख जाती लेकिन महिंद्रा पिकअप का ड्राइवर अपनी गाड़ी पर नियंत्रण नहीं रख सका। इस मामले में ट्राइब्यूनल ने महिंद्रा पिकअप का इंश्योरेंस करने वाली कंपनी, मालिक और ड्राइवर को मुआवजे का 70 प्रतिशत वहन करने का आदेश दिया। जाधव की इनोवा का इंश्योरेंस करने वाली कंपनी को बाकी का 30 प्रतिशत मुआवजा देने को कहा। ट्राइब्यूनल ने इस मामले में माना कि नैशनल हाईवे पर साइड में गाड़ी पार्क करना लापरवाही थी और हादसे के लिए उसका ड्राइवर (भूषण जाधव) भी जिम्मेदार है।

2017 में भी दो इंश्योरेंस कंपनियों को करीब 3 करोड़ रुपये मुआवजा देना पड़ा
2017 में भी ऐसे ही एक मामले में दो इंश्योरेंस कंपनियों को करीब 3 करोड़ रुपये मुआवजा देना पड़ा था। दरअसल, 2015 में वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर एक कार दुर्घटना में पायलट की मौत हुई थी। इस मामले में इंश्योरेंस कंपनियों को पायलट के 68 वर्ष के पिता को करीब 3 करोड़ रुपये देना पड़ा था।

'हिट ऐंड रन' मामले में मुआवजे के नियम
अगर हादसे के बाद ड्राइवर गाड़ी के साथ फरार हो जाए तो यह मामला हिट ऐंड रन का होता है। ऐसे हादसों में मुआवजे के नियमों को केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने इसी साल बदला था। नए नियम 1 अप्रैल 2022 से लागू हो चुके हैं। इसके तहत, हिट ऐंड रन केस में मौत होने पर परिजन को 2 लाख रुपये का मुआवजा मिलेगा। पहले यह राशि 25 हजार रुपये थी। वहीं गंभीर रूप से घायल होने पर 12500 की जगह 50000 रुपये का मुआवजा मिलेगा।

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मोटर वीइकल ऐक्ट के तहत मिलता है मुआवजा
सड़क हादसे में जख्मी या मौत होने पर मोटर वीइकल ऐक्ट 1988 के तहत मुआवजा मिलता है। यह कानून 1 जुलाई 1989 को लागू हुआ था और मोटर वीइकल ऐक्ट 1939 की जगह लिया था। वैसे भारत में सबसे पहले 1914 में मोटर वीइकल ऐक्ट वजूद में आया था। मोटर वीइकल ऐक्ट 1988 के तहत ही सड़क हादसे के मामलों में दावे और मुआवजे का फैसला होता है।

मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्राइब्यूनल
मोटर वीइकल्स ऐक्ट 1988 के तहत सरकार ने सड़क दुर्घटना से जुड़े क्लेम के मामलों के निपटारे के लिए मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्राइब्यूनल बनाया है। इनका मकसद मामलों में जल्दी से फैसला और न्याय सुनिश्चित करना है। सड़क हादसे में मौत, जख्मी होने या फिर संपत्ति के नुकसान के मामले में ट्राइब्यूनल ही मुआवजे का फैसला करता है।

कौन कर सकता है मुआवजे के लिए आवेदन
मोटर वीइकल ऐक्ट की धारा 166 के तहत किसी हादसे की स्थिति में ये लोग मुआवजे के लिए दावा कर सकते हैं-

- जख्मी व्यक्ति
- जिस संपत्ति को नुकसान पहुंचा, उसका मालिक
- मोटर एक्सीडेंट में मारे गए किसी शख्स का कानूनी प्रतिनिधि
- जख्मी व्यक्ति का अधिकृत एजेंट या मृत व्यक्ति का वैध प्रतिनिधि

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कब किया जा सकता है मुआवजे की मांग
मोटर वीइकल ऐक्ट 1988 की धारा 165 (1) के तहत इन परिस्थितियों में कोई शख्स मुआवजे की मांग कर सकता है-

- जब हादसे में किसी शख्स की मौत या उसे शारीरिक क्षति पहुंची हो
- जब हादसे की वजह से किसी थर्ड पार्टी की संपत्ति को नुकसान पहुंचा हो
-जब इस तरह के हादसे में मोटर वाहन का इस्तेमाल हुआ हो

कहां कर सकते हैं दावा
सड़क हादसे की स्थिति में मुआवजे के लिए इन ट्राइब्यूनल्स में दावा किया जा सकता है
- दावा करने वाला शख्स जहां रहता हो, वहां के क्लेम ट्राइब्यूनल में
- गाड़ी का मालिक जहां रहता हो वहां के क्लेम ट्राइब्यूनल में
-जिस जगह हादसा हुआ हो, वहां के क्लेम ट्राइब्यूनल में
-हादसे के अधिकतम 6 महीने के भीतर क्लेम करना जरूरी

मुआवजे का दावा करने के लिए जरूरी कागजात
-सड़क हादसे को लेकर दर्ज कराई गई FIR की कॉपी
-मौत की स्थिति में पंचनामा, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की कॉपी
-डेथ सर्टिफिकेट
-मृतकों और दावेदारों की पहचान से जुड़े दस्तावेज
-मृतक का आय प्रमाण पत्र
-मृतक/जख्मी का जन्म प्रमाण पत्र
- थर्ड पार्टी इंश्योरेंस पॉलिसी का कवर नोट, अगर कोई हो

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इन स्थितियों में इंश्योरेंस कंपनी क्लेम से मना कर सकती है

कुछ स्थितियों में इंश्योरेंस कंपनियां क्लेम देने से मना कर सकती है। अगर हादसे के वक्त ड्राइवर लापरवाही से ड्राइव न कर रहा हो, उसके पास गाड़ी से जुड़ सभी वैध कागजात हों, वह शराब न पिया हुआ हो तो इंश्योरेंस कंपनी क्लेम देने से मना कर सकती हैं। हालांकि, अगर ट्राइब्यूनल कोर्ट ने मुआवजे का आदेश दिया है तो इंश्योरेंस कंपनी को इसका भुगतान करना ही होगा या फिर फैसले को अपीलेट ट्राइब्यूनल या कोर्ट में चुनौती देना होगा।

केस टु केस अलग होता है मुआवजा, कई बातों से होता है तय
सड़क दुर्घटना में मौत पर मुआवजे की कोई राशि निश्चित नहीं की गई है। यह केस-टु-केस निर्भर करता है यानी हर एक केस के तथ्यों पर निर्भर होता है। मुआवजे की राशि तय करते वक्त अदालतें बहुत सी बातों को ध्यान में रखती हैं।

मुआवजा नुकसान पर भी निर्भर करता है। नुकसान शारीरिक या मानसिक दोनों हो सकता है। इसके अलावा हादसे में किसी व्यक्ति को किस तरह की चोट लगी है, मुआवजे को तय करने में ये भी महत्वपूर्ण होता है। जैसे मान लीजिए कि किसी हादसे में किसी शख्स के पैर की कोई उंगली कट गई हो तो उसे उस व्यक्ति की तुलना में कम मुआवजा मिलेगा जिसका पूरा हाथ ही कट गया हो। इसकी वजह ये है कि हाथ कट जाने से व्यक्ति के काम करने क्षमता घट जाएगी और इसी तरह उसके कमाने की क्षमता भी घट जाती है।

मुआवजे को निर्धारित करने वाले कारकों में नुकसान के अलावा पीड़ित व्यक्ति की आयु, उसकी आय, जख्मी या मरने वाले व्यक्ति के ऊपर निर्भर लोगों की संख्या, पीड़ित के इलाज पर आने वाला खर्च आदि।

लेखक के बारे में

चन्द्र प्रकाश पाण्डेय अगस्त 2016 से नवभारतटाइम्स.कॉम में कार्यरत हैं। टीवी पत्रकारिता से शुरुआत कर डिजिटल जर्नलिज्म में कदम रखा। पूर्वी यूपी के एक गांव से ताल्लुक रखते हैं। सीखने-समझने का क्रम जारी है। . और पढ़ें

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